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संत की शरणागति होकर ही ईश्वर की भक्ति प्राप्त की जा सकती हैं:- स्वामी कुंदनानन्द जी

संत की शरणागति होकर ही ईश्वर की भक्ति प्राप्त की जा सकती हैं:- स्वामी कुंदनानन्द जी



 *संत की शरणागति होकर ही ईश्वर की भक्ति प्राप्त की जा सकती हैं:- स्वामी कुंदनानन्द जी* 

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के तत्वाधान में आयोजित तीन दिवसीय श्री रामचरितमानस एवं गीता विवेचना के दूसरे दिन नगीना शांति वाटिका के सामने क्रिसेंट गार्डन सौभाग्य पथ रुकनपुरा पटना में संस्थान के संस्थापक व संचालक सर्व श्री आशुतोष  महाराज जी के शिष्य कुन्दनानन्द जी ने प्रवचन करते हुए कहा कि मानव का जीवन भक्ति के लिए मिला है भक्ति का अर्थ जुड़ना है इसलिए हम आरती में अक्सर कहा करते हैं कि "किस विधि मिलूँ  दयामय, तुमको मैं  कुमति" यानी कि परमात्मा से मिलना, परमात्मा को प्राप्त कर लेना या यूं कहें की परमात्मा की सेवा करना ही भक्ति है गोस्वामी तुलसीदास जी कहते हैं कि राम  भक्ति चिन्तामनि सुंदर | बसई गरुड जाके उर अंतर || परम प्रकाश रूप दिन राती | नहीं चाहिए दिया घृत बाती || यानि राम की भक्ति से व्यक्ति सभी चिंताओं से मुक्ति पा लेता है  हृदय में भक्ति प्रकट होने से अज्ञानता का अंधकार मिट  जाता है तथा ज्ञान का प्रकाश फैल जाता है  जिसके लिए दिया घृत बाती की आवश्यकता नहीं रहती है | ऐसी भक्ति ही सभी सुखों की खान है परंतु इस भक्ति को बिना संत की सहायता से प्राप्त नहीं की जा सकती है |  भगवान श्री राम ने भी नवधा  भक्ति बताते हुए माता शबरी को कहा था कि अगर कोई मेरी भक्ति करना चाहता है तो पहली सीढ़ी है संतों की शरणागति | अर्थात भक्ति को प्राप्त करने के लिए संत की शरणागति अति आवश्यक है | आगे आशुतोष महाराज जी के शिष्य अरुण जी ने बताया कि व्यक्ति को हमेशा अपने कर्मों पर ध्यान देना चाहिए श्रेष्ठ कर्म कर मानव अपने भविष्य को उज्वल बना समाज के लिए आदर्शवान बन सकता है वहीं अगर कर्म में निम्नता आ गई तो मानव अपने भविष्य को अंधकारमय कर अपने दुर्भाग्य का स्वयं निर्माता बन जाता है।

श्रेष्ठ कर्म करने के लिए हर मानव को पूर्ण संत की शरणागति प्राप्त कर ईश्वर से जुड़ना ही पड़ेगा । साध्वी सरिता भारती जी ने सुमधुर भजनों का गायन कर सबको भावविभोर कर दिए। क्षेत्र के सैकड़ों श्रद्धालु इस पावन आध्यात्मिक आयोजन का लाभ उठा रहे हैं।

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